Bible Reading | 02 May 2023 | बाइबल पाठ

पहला पाठ :प्रेरित-चरित 11:19-26

19) स्तेफ़नुस को ले कर येरुसालेम में अत्याचार प्रारंभ हुआ था। जो लोग इसके कारण बिखर गये थे, वे फेनिसिया, कुप्रस तथा अंताखिया तक पहुँच गये। वे यहूदियों के अतिरिक्त किसी को सुसमाचार नहीं सुनाते थे।

20) किंतु उन में से कुछ कुप्रुस तथा कुराने के निवासी थे और वे अंताखिया पहुँच कर यूनानियों को भी प्रभु ईसा का सुसमाचार सुनाते थे।

21) प्रभु उनकी सहायता करता था। बहुत से लोग विश्वासी बन कर प्रभु की ओर अभिमुख हो गये।

22) येरुसालेम की कलीसिया ने उन बातों की चर्चा सुनी और उसने बरनाबस को अंताखिया भेजा।

23) जब बरनाबस ने वहाँ पहुँच कर ईश्वरीय अनुग्रह का प्रभाव देखा, तो वह आनन्दित हो उठा। उसने सबों से अनुरोध किया कि वे सारे हृदय से प्रभु के प्रति ईमानदार बने रहें

24) क्योंकि वह भला मनुष्य था और पवित्र आत्मा तथा विश्वास से परिपूर्ण था। इस प्रकार बहुत-से लोग प्रभु के शिष्यों मे सम्मिलित हो गये।

25) इसके बाद बरनाबस साऊल की खोज में तरसुस चला गया

26) और उसका पता लगा कर उसे अंतखिया ले आया। दोनों एक पूरे वर्ष तक वहाँ की कलीसिया के यहाँ रह कर बहत-से लोगों को शिक्षा देते रहे। अंताखिया में शिष्यों को पहेले पहल ’मसीही’ नाम मिला।

सुसमाचार : योहन 10: 22-30

22) उन दिनों येरुसालेम में प्रतिष्ठान पर्व मनाया जा रहा था। जाडे का समय था।

23) ईसा मंदिर में सुलेमान के मण्डप में टहल रहे थे।

24) यहूदियों ने उन्हें घेर लिया और कहा आप हमें कब तक असमंजस में रखे रहेंगे? यदि आप मसीह हैं, तो हमें स्पष्ट शब्दों में बता दीजिये।

25) ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, मैंने तुम लोगों को बताया और तुम विश्वास नहीं करते। जो कार्य मैं अपने पिता के नाम पर करता हूँ, वे ही मेरे विषय में साक्ष्य देते हैं।

26) किंतु तुम विश्वास नहीं करते, क्योंकि तुम मेरी भेडें नहीं हो।

27) मेरी भेडें मेरी आवाज पहचानती है। मै उन्हें जानता हँ और वे मेरा अनुसरण करती हैं।

28) मै उन्हें अनंत जीवन प्रदान करता हूँँ। उनका कभी सर्वनाश नहीं होगा और उन्हें मुझ से कोई नहीं छीन सकेगा।

29) उन्हें मेरे पिता ने मुझे दिया है वह सब से महान है। उन्हें पिता से केाई नहीं छीन सकता।

30) मैं और पिता एक हैं।

फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)

आज के सुसमाचार में हमें दो विरोधाभासी चीजें देखने को मिलती है । एक तरफ हम देखते हैं कि शिष्यों के सताए जाने के कारण सुसमाचार का संदेश संसार के कोने कोने में फ़ैल जाता है और लोग प्रभु येसु के अनुयायियों को पहचानना शुरू कर देते हैं और पहली बार उन्हें ईसाई नाम देते हैं। उन्हें ईसाई नाम इसलिए दिया गया था क्योंकि वे ईसा के अनुयायी थे । वहीं दूसरी तरफ आज के सुसमाचार में यहूदी लोग प्रभु येसु को नहीं पहचान पाते और उनसे पूछते हैं कि आप कब तक हमें संदेह में रखेंगे ? प्रभु येसु ने सब कुछ सबों को सामने किया था उनकी शिक्षाएं कोई छुपी हुई शिक्षाएं नहीं थी उनके कार्य और चमत्कार किसी से छुपे हुए नहीं थे लेकिन फिर भी वे प्रभु येसु को पहचानने में असफल होते हैं ।

हमारी वास्तविक पहचान हमारे व्यवहार एवं हमारे जीवन जीने के तरीके से प्रकट होती है। यदि हमईश वचन को सुनते और उस पर मनन चिंतन करते हैं, प्रभु येसु में विश्वास करते हैं, ईश्वर के बताए मार्ग पर चलते हैं तो हम सच्चे ईसाई कहलाएंगे, लेकिन क्या प्रभु येसु की शिक्षाएं हमारे जीवन के द्वारा प्रकट होती है? कई बार हम अपने विश्वास के मामले में ठंडे पड़ जाते हैं और अपने विश्वास को प्रकट करने की वजाय उसे दबा देते हैं । हमें देखकर आज बहुत सारे लोग अपना संदेह प्रकट कर सकते हैं कि क्या हम वास्तव में ईसाई है। आज हमें अपने भले चरवाहे की वाणी को सुन कर और उसके पीछे पीछे चलने की जरूरत है ।

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